वर्ष 2018 में चेन्नई में बरसात और बाढ़ से होने वाली विभीषिका को पूरे हिंदुस्तान ने देखा, साथ ही एक-एक बूँद पानी को तरसते महाराष्ट्र के लातूर के लिए पूरा देश चिंतित भी हुआ. किन्तु प्रतिवर्ष घटने वाली इन विभीषिकाओं से कोई भी सबक नहीं लेते हुए इस बार भी भारत जल संकट की भयंकर विभीषिका झेल रहा है. इस बार महानगर चेन्नई एक बार फिर त्रस्त है, परन्तु भयंकर जल संकट से. सूख चुके प्राकृतिक जलस्त्रोत, कम बारिश इत्यादि इसके प्रमुख कारण रहे. इन सबके पीछे कोई और नहीं सरकार की गलत नीतियां और हम सब के द्वारा प्रकृति का किया गया दोहन है. हमारी गलत आदतों का परिणाम देश के कई राज्य झेल रहे हैं और कइयों को झेलना बाकी है. ऐसा ही एक राज्य हरियाणा है जिसकी आर्थिक राजधानी गुरुग्राम (गुडगांव) पानी से जुड़ी समस्याओं को झेलने के लिये विवश है.
गुरुग्राम के कई इलाके थोड़ी ज्यादा बारिश होने के
बाद ही जलमग्न हो जाते हैं. सड़कों पर दो से तीन फीट से ऊपर तक पानी जमा हो जाता है.
ऐसा तब है जब मात्र 2012 में तैयार किया गया
बादशाहपुर ड्रेन का निर्माण इन समस्याओं से निपटने के लिए ही हुआ था. ऐसे में सरकार
की कार्य पद्धति पर सवाल उठना लाज़िमी है. हमारे सामने चंडीगढ़ जैसे प्रीप्लांड शहर का
उदाहरण होने के बावजूद जब कई सालों बाद बसाये गए गुरुग्राम की ऐसी स्थिति सामने आती
है तो हमारा ऐसी प्लानिंग पर सोचने को मज़बूर होना लाज़मी
है.
बादशाहपुर ड्रेन बनाये जाने के बाद प्रशासन ने उम्मीद
जताई थी की इससे दर्जन भर इलाकों में होने वाले जलभराव से निजात मिलेगी मगर ऐसा कुछ
नहीं हुआ. प्रेशर के साथ जब गुड़गांव-मानेसर डेवलपमेंट प्लान के सेक्टर- 47 से लेकर 75 तक और ग्वाल पहाड़ी डेवलपमेंट प्लान का पानी
बादशाहपुर ड्रेन में आता है, तो खांडसा गांव के समीप क्षमता
कम होने से ओवरफ्लो होने लगता है. पिछले मानसून में हीरो होंडा चौक पर तीन-तीन फीट
पानी भर गया था. साथ ही सेक्टर-34 और 37 भी पानी से भर गया था.
बादशाहपुर ड्रेन की क्षमता 500 क्यूसेक है. अधिकारियों के मुताबिक इस ड्रेन की लंबाई 24 किलोमीटर और इसकी चौड़ाई 10 मीटर है. जो घाटा गांव से
शुरू हुई है और बहरामपुर खांडसा होते हुए नजफगढ़ ड्रेन में जाकर मिलती है.
गुड़गांवटाउन एंड कंट्री प्लानिंग डिपार्टमेंट ने
बादशाहपुर ड्रेन की क्षमता बढ़ाने को लेकर ले-आउट प्लान तैयार किया है. इसकी राह में
18 मकान आ रहे हैं. मंजूरी मिलने के बाद जमीन अधिग्रहण
की प्रक्रिया को शुरू कर दिया जाएगा. गांव खांडसा के पास बादशाहपुर ड्रेन की क्षमता
500 क्यूसिक है, जिसे बढ़ाकर 1750
करने का प्लान है. इसको लेकर की हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण
(हुडा) की तरफ से दो प्लान तैयार किए गए थे. समाचारपत्रों के अनुसार इन प्लान में से
राधा कृष्ण आश्रम से एएमपी मोटर की बाउंड्री वॉल से नरसिंहपुर, सेक्टर 36, सेक्टर 36 और 37
की डिवाइडिंग रोड, जयभारत मारूति से होते
हुए सेज एरिया तक जमीन का अधिग्रहण करने के प्लान का ले-आउट तैयार किया गया है. गौरतलब
है कि पिछले दिनों हुई बरसात के दौरान बादशाहपुर ड्रेन कई जगहों से टूट गई थी. इससे
रिहायशी और इंडस्ट्रियल एरिया में जलभराव हो गया था. इसको लेकर चीफ सेक्रेटरी ने हुडा
अधिकारियों को निर्देश जारी किए थे कि इस समस्या का हल निकाला जाए. ड्रेन की क्षमता
को बढ़ाने के लिए हूडा को 15 मीटर चौड़ाई और एक किलोमीटर लंबी
जमीन की आवश्यकता है.
गुरुग्राम में पानी का स्तर हर वर्ष डेढ़ मीटर (2004 से 2014 की वॉटर
टेबल रिपोर्ट) नीचे जा रहा है.
शहरीकरण और उद्योगीकरण के नाम पर जमकर प्रकृति
का दोहन हो रहा है.
नियमों की अनदेखी की जा रही है.
तालाब, झील जैसे प्राकृतिक
स्रोत सूख चुके हैं.
नेचुरल वॉटर बॉडी का अस्तित्व ही संकट में है.
समाप्त होते वॉटर बॉडी
यहां यह जानना जरूरी है कि एक समय 214 वॉटर बॉडी थी गुड़गांव में. 2009 में पंजाब एवं हरियाणा
हाई कोर्ट में वॉटर बॉडी को लेकर दायर एक याचिका में तत्कालीन डीसी ने शपथपत्र दिया
था. इसमें यह भी बताया था कि अधिकांश वॉटर बॉडी का अस्तित्व अब खत्म हो चुका है. इनमें
से एक वॉटर बॉडी घाटा झील का भी जिक्र था.
घाटा झील जिसका पूरा एरिया करीब 1.5 किमी का है अब अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहा है. नेचुरल बहाव को रोक दिया गया
है. उसके रास्ते में हाईराइज बिल्डिंग बनाई जा रही है. इससे नेचुरल वॉटर बॉडी का अस्तित्व
ही संकट में पड़ गया है. लो लैंड होने के चलते यहां पर अरावली रेंज का पानी जमा होता
है. इससे ग्राउंड वॉटर रिचार्ज होता है. सोशल एक्टिविस्ट रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल
सर्वदमन सिंह ओबराय ने झील पर बिल्डिंग बनाने की शिकायत नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी)
में की है. इसमें उन्होंने बताया कि साल 2002 में अरावली रेंज का पानी यहां पर इकट्ठा होता था. टीसीपी और जिला प्रशासन के
कुछ अफसरों ने झील के अस्तित्व को खत्म कर दिया.
साल 2011 में टीसीपी ने जब
बिल्डर्स को लाइसेंस दिया तो सिंचाई विभाग ने लिखित में ऐतराज जताया था. अफसरों ने
सिंचाई विभाग के लेटर को नजरअंदाज कर दिया. घाटा झील का पानी दिल्ली के मांडी गांव
से लेकर बहरामपुर गांव तक इकट्ठा होता था. घाटा झील को भरने के साथ ही हजारों पेड़
भी काट दिए गए. अब घाटा गांव से पानी प्रेशर के साथ बादशाहपुर ड्रेन में आता है. ड्रेन
ओवरफ्लो होने से हीरो होंडा चौक, सेक्टर 34, 37, बसई, गाड़ौली, धनकोट
में जलभराव हो जाता है.
यहां समझने वाली बात यह है कि प्रशासन के द्वारा
बरती जा रही लापरवाही और नियमों की अनदेखी ने हरियाणा की आर्थिक राजधानी का यह हाल
कर दिया है. न जाने देश के ऐसे कई इलाकों का क्या हाल होगा जिसपर मीडिया की नज़र नहीं
जा पाती है. पानी से जुड़ी समस्या आज कितनी भयावह रूप में परिवर्तित हो चुकी है इसे
समझना आज बेहद जरुरी है. वैश्विक स्तर पर पानी पर चर्चा
होना ही विषय की महत्ता को बताता है.
ऊंची- ऊंची इमारतों वाले गुड़गांव में एक बार फिर
जलसंकट गहराता जा रहा है. दो वर्ष पहले विकराल जलसंकट से जूझ चुकी इस इंडस्ट्रियल सिटी
में दोबारा पहले जैसी स्थितियां बन रही हैं, जिसका प्रमुख कारण है
जिले में बढ़ता तापमान, उद्योग और भूजल का दोहन. जिसके चलते गुरूग्राम
का जलीय परिदृश्य कुछ इस प्रकार दिखाई पड़ रहा है -
गुड़गांव की विडंबना यह है कि इस साइबर सिटी की
इमारतें दिन- प्रतिदिन जितनी ऊंची होती जा रही हैं, जिले में जल का स्तर
उतना ही नीचे जा रहा है. गुरूग्राम में लगातार जितनी नई औद्योगिक इकाइयां जुड़ रही
हैं, जिले में जल की उतनी ही किल्लत बढ़ती जा रही है.
जिसका प्रमुख कारण है यहां के प्राकृतिक संसाधनों
व भूजल का पूर्णतया दोहन किया जाना. साथ ही औद्योगिक इकाइयों को संचालित के लिए रोजाना
बड़ी मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है तथा पानी की कमी के बावजूद उद्योगों में
अधिक मात्रा में पानी का प्रयोग होने से आम जनजीवन ज्यादा प्रभावित हो रहा है.
वहीं उद्योगपतियों का कहना है कि प्रशासन द्वारा
उद्योगों के लिए जितना पानी आवश्यक है, उतना उपलब्ध नहीं कराया
जा रहा. जिसके चलते वह निजी टैंकरों पर निर्भर हैं तथा ऊंचे दामों पर पानी खरीदने को
मजबूर हैं. जिससे उनका व्यापार प्रभावित हो रहा है. वहीं पानी की किल्लत के चलते जिले
में निवेश का स्तर भी लगातार घटता जा रहा है, साथ ही नई औद्योगिक
इकाइयों की स्थापना भी नहीं हो पा रही है.
जलसंकट के मुहाने पर खड़े गुड़गांव में एक तरफ जहां
औद्योगिक संकट मंडरा रहा है. वहीं दूसरी ओर पर्याप्त पेयजल की समस्या भी बढ़ती जा रही
है. जिले का जलस्तर काफी नीचे पहुंच चुका है. हालांकि प्रशासन द्वारा आश्वासन दिया
जा रहा है कि जिले के लिए नहरी पानी पर्याप्त हैं, लेकिन हालात कुछ और
ही बयां कर रहे हैं.
जिले के कई शहरी व कॉलोनाइजर इलाकों के लोग पेयजल
के लिए संघर्ष कर रहे हैं. पानी की अपर्याप्त सप्लाई के चलते टैंकरों से पानी की आपूर्ति
की जा रही है. जिसके चलते कहीं अत्याधिक ऊंचे दामों में पानी मिल रहा है, तो कहीं कई घंटे कतार में लगने के बाद कुछ बूंदे नसीब हो रही हैं.
पानी की कमी इस हद तक पहुंच गई है कि लोग ट्यूबवेल
से जल निकालने के लिए मजबूर हैं. वहीं कई जगहों पर तो ट्यूबवेल भी सूख गए हैं तथा ट्यूबवेल
की उपलब्धता के बावजूद लोगों को पर्याप्त पानी नहीं मिल पा रहा. इसके अलावा कई जगहों
पर पाइप लाइन फटने से भी पानी की समस्या बनी हुई है. जिले की जनता को नगर निगम व जिला
प्रशासन द्वारा इन समस्याओं पर उचित कार्रवाई का इंतजार है.
देश का एक छोटा सा उदाहरण दूँ तो आज सांगपो (ब्रह्मपुत्र)
नदी पर डैम बनते ही नार्थ-ईस्ट के लोग चीन का नाम लेना पसंद नहीं करते. अरुणाचल में
अपर सियांग और लोवर सियांग दो जिलों में नदी का पानी उथला हो चूका है. साथ ही वहाँ
के जनजीवन पर डैम का प्रभाव पड़ना शुरू हो चूका है. इसके साथ ही मेघालय और असम भी प्रभावित
हुऐ है. विश्वप्रसिद्ध माजुली द्वीप पर भी संकट के बादल मंडराने लगा है.
विदेश का एक उदाहरण दिया जाये तो यह समझते हमें
देर नहीं लगेगी की आज जल प्यास बुझाने के साथ-साथ सामरिक महत्व भी पा चुका है. चाइना
का पडोसी देश लाओस जो मेकांग नदी पर पनबिजली संयंत्र लगाकर 90% बिजली थाईलैंड को बेचता था. पनबिजली लाओस की अर्थव्यवस्था की रीढ़ थी. लेकिन
चीन ने अपने यहाँ मेकाँग नदी पर इतना विशाल डैम बना दिया कि लाओस की अर्थव्यवस्था पूरी
तरह से चरमरा गई.
आज हमें सचेत होने की जरूरत है. प्रकृति से खिलवाड़ बंद करना होगा. हमें खुद को बदलना होगा वरना नियमों की अनदेखी और अपने गलत तौर-तरीके से होने वाले गंभीर परिणाम के लिए भी हमें तैयार रहना होगा. वैसे भी चेन्नई-कश्मीर, लातूर-बुंदेलखंड जैसे ही कई इलाके आपका इंतज़ार कर रहे हैं.
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